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अथ निगुणा का अंग / दादू ग्रंथावली / दादू दयाल

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अथ निगुणा का अंग

दादू नमो नमो निरंजनं, नमस्कार गुरु देवतः।
वन्दनं सर्व साधवा, प्रणामं पारंगतः॥1॥

सगुणा निगुणा कृतघ्नी

दादू चन्दन बावना, बसे बटाऊ आय।
सुखदाई शीतल किये, तीन्यों ताप नशाय॥2॥
काल कुहाड़ा हाथ ले, काटण लागा ढाय।
ऐसा यहु संसार है, डाल मूल ले लाय॥3॥

अज्ञ स्वभाव अपलट

सद्गुरु चन्दन बावना, लागे रहै भुवंग।
दादू विष छाड़े नहीं, कहा करे सत्संग॥4॥
दादू कीड़ा नर्क का, राख्या चन्दन माँहिं।
उलट अपूठा नर्क में, चन्दन भावे नाँहिं।5॥
सद्गुरु साधु सुजाण है,शिष का गुण नहिं जाय।
दादू अमृत छाड़कर, विष्ज्ञय हलाहल खाय॥6॥
कोटि वर्ष लैं राखिए, बंसा चन्दन पास।
दादू गुण लीये रहै, कदै न लागे बास॥7॥
कोटि वर्ष लौं राखिए, पत्थर पाणी माँहिं।
दादू आडा अंग है, भीतर भेदै नाँहिं॥8॥
कोटि वर्ष लौं राखिए, लोहा पारस संग।
दादू रोम का अंतरा, पलटे नाँहीं अंग॥9॥
कोटि वर्ष लौं राखिए, जीव ब्रह्म सँग दोय।
दादू माँहीं वासना, कदे न मेला होय॥10॥

सगुणा, निगुणा कृतघ्नी

मूसा जलता देखकर, दादू हंस दयाल।
मानसरोवर चल्या, पंखाँ काटे काल॥11॥
सब जीव भुवंगम कूप में, साधु काढे आइ।
दादू विषहरि विष भरे, फिर ताही को खाइ॥12॥
दादू दूध पिलाइए, विषहरि विष कर लेय।
ुण का अवगुण कर लिया, ता ही को दुःख देय॥13॥

अज्ञ स्वभाव अपलट

बिन ही पावक जल मुवा, जवासा जल माँहिं।
दादू सूखे सींचताँ, तो जल को दूषण नाँहिं॥14॥

सगुणा, निगुणा कृतघ्नी

सुफल वृक्ष परमारथी, सुख देवे फल फूल।
दादू ऊपर बैस कर, निगुणा काटे मूल॥15॥
दादू सगुणा गुण करे, निगुणा माने नाँहिं।
निुणा मर निष्फल गया, सगुणा साहिब माँहिं॥16॥
निगुणा गुण माने नहीं, कोटि करे जे कोय।
दादू सब कुछ सौंपिए, सो फिर वैरी होय॥17॥
दादू सगुणा लीजिए, निगुणा दीजे डार।
सगुणा सन्मुख राखिए, निगुणा नेह निवार॥18॥
सगुणा गुण केते करै, निगुणा न माने एक।
दादू साधु सब कहै, निगुणा नरक अनेक॥19॥
सगुणा गुण केते करै, निगुणा नाखे ढाहि।
दादू साधु सब कहै, निगुणा निर्फल जाइ॥20॥
सगुण गुण केते करै, निगुणा न माने कोय।
दादू साधु सब कहै, भला कहाँ तैं होय॥21॥
सगुणा गुण केते करै, निगुणा न माने नीच।
दादू साधु सब कहै, निगुणा के शिर मीच॥22॥
साहिबजी सब गुण करै, सद्गुरु के घट होय।
दादू काढैं काल मुख, निगुणा न माने कोय॥23॥
साहिबजी सब गुण करै, सद्गुरु माँहीं आय।
दादू राखैं जीव दे, निगुणा मेटे जाय॥24॥
साहिबजी सब गुण करै, सद्गुरु का दे संग।
दादू परलै राखिले, निगुणा न पलटे अंग॥25॥
साहिबजी सब गुण करै, सद्गुरु आडा देय।
दादू तारे देखतां, निगुणा गुण नहिं लेय॥26॥
सद्गुरु दीया रामधन, रहै सुबुद्धि बताय।
मनसा वाचा कर्मणा, बिलसे वितड़े खाय॥27॥
कीया कृत मेटे नहीं, गुण हीं माँहिं समाय।
दादू बधै अनन्त धन, कबहूँ कदे न जाय॥28॥

॥इति निगुणा का अंग सम्पूर्ण॥