अथ राग अडाणा
(गायन समय रात्रि 12 से 3)
111. समर्थ गुरु महिमा। त्रिताल
भाई रे ऐसा सद्गुरु कहिए, भक्ति मुक्ति फल लहिए॥टेक॥
अविचल अमर अविनाशी, अठ सिधि नव निधि दासी॥1॥
ऐसा सद्गुरु राया, चार पदारथ पाया॥2॥
अमी महा रस माता, अमर अभय पदा दाता॥3॥
सद्गुरु त्रिभुवन तारे, दादू पार उतारे॥4॥
112. गुरुमुख कसौटी। ललित ताल
भाई रे भान घड़े गुरु मेरा, मैं सेवक उस केरा॥टेक॥
कंचन करले काया, घड़-घड़ घ्ज्ञट निपाया॥1॥
मुख दर्पण माँहिं दिखावे, पिव परकट आण मिलावे॥2॥
सद्गुरु साचा धोवे, तो बहुर न मैला होवे॥3॥
तन-मन फेरि सँवारे, दादू कर गह तारे॥4॥
113. गुरु मुख उपदेश। ललित ताल
भाइ रे तेन्हौं रूड़ौ थाये, जे गुरुमुख मारग जाये॥टेक॥
कुसंगति परिहरिये, सत्संगति अणसरिये॥1॥
काम क्रोध नहिं आणैं, वाणी ब्रह्म बखाणैं॥2॥
विषिया तैं मन वारे, ते आपणपो तारे॥3॥
विष मूकी अमृत लीधो, दादू रूड़ौ कीधो॥4॥
114. विनती। पंचम ताल
बाबा मन अपराधी मेरा, कह्या न माने तेरा॥टेक॥
माया-मोह मद माता, कनक कामिनी राता॥1॥
काम-क्रोध अहंकारा, भावे विषय विकारा॥2॥
काल मीच नहिं सूझे, आतम राम न बूझे॥3॥
समर्थ सिरजनहारा, दादू करै पुकारा॥4॥
115. चेतावनी। पंचम ताल
भाई रे यों विनशै संसारा, काम-क्रोध अहंकारा॥टेक॥
लोभ मोह मैं मेरा, मद मत्सर बहुतेरा॥1॥
आपा पर अभिमाना, केता गर्व गुमाना॥2॥
तीन तिमिर नहिं जाहीं, पंचों के गुण माँहीं॥3॥
आतम राम न जाना, दादू जगत् दिवाना॥4॥
116. ज्ञान। रूपक ताल
भाई रे तब क्या कथसि गियाना, जब दूसर नाँहीं आना॥टेक॥
जब तत्त्वहिं तत्त्व समाना, जहाँ का तहाँ ले साना॥1॥
जहाँ का तहाँ मिलावा, ज्यों था त्यों होइ आवा॥2॥
संधे संधि मिलाई, जहाँ तहाँ थिति पाई॥3॥
सब अंग सब ही ठाँई, दादू दूसर नाँहीं॥4॥
॥इति राग अडाणा सम्पूर्ण॥