अदमी मशीन हो गेलइ / सिलसिला / रणजीत दुधु
जे हँसऽ खेलऽ हलइ से गमगीन हो गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
जे भी हे बचल पहिलउका सब दुरा-दलान
देखऽ सबके सब बेचारा हे पड़ल वीरान
सब बंट-बंट के हे एकसर दीन हो गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
रहलइ न´ बड़-छोट के अब तनिको लेहाज
देखते-देखते बदल गेलइ हमर समाज
मामला हल्का न´ अब संगीन हो गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
जेकरा से हलइ परदा उहे होलइ चलन
बदल गेलइ अदमी के सोचे के ढंग
घर-घर मोबाइल टीभी रंगीन हो गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
परकिरती से होके दूर खोजे खुशहाली
खायले न´ मिले अखने मक्खन आउ छाली
दारू के साथ मुर्गा नमकीन हेा गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
न´ बाबा के कंधा न´ नानी के लोरी
इहे से बिगड़ गेलो अखने छँउड़ा छँउरी
सब अछकन खराब में परबीन हो गेलइ
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।
जेकरा पर रहऽ हल चिड़इयंन के खोंतवा
देखेले न´ मिले हे ऊ पीपरा आउ बरवा
परकिरती बेचारी श्रीहीन हो गेलइ।
अब तो अदमी भी अखने मशीन हो गेलइ।