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अधर्मी / ज्योति रीता
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कोई धर्म
ना कोई जात
ना मैं किसी के अनुयायी
मस्त आवारा हवा का झोंका
खुली खिड़की दरवाजे से
कहीं भी आऊं-जाऊँ
बंद किवाड़ नहीं भाते मुझे
जरा-सी भी पाक मेरा प्रवेश द्वार
सुकून ही देता है
दम घुटते हुए को प्राण
कर लो बंद खिड़की किवाड़
रहने देना बस थोड़ी-सी फांक॥