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अधिकार नहीं दोगे मुझको / माखनलाल चतुर्वेदी

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आते-आते रह जाते हो--जाते-जाते दीख रहे,
आँखे लाल दिखाते जाते, चित्त लुभाते दीख रहे,
दीख रहे, पावनतर बनने की धुन के मतवाले-से,
दीख रहे, करुणा-मन्दिर-से प्यारे देश निकाले-से,
दोषी हूँ, क्या जीने का
अधिकार नहीं दोगे मुझको,
होने को बलिहार
पदों का प्यार नहीं दोगे मुझको?

रचनाकाल: प्रताप प्रेस, कानपुर-१९२३