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अधूरा गीत / संजीव 'शशि'
Kavita Kosh से
सजे जो स्वप्न नयनों में,
उन्हें आकार तुम दे दो।
हमारी प्रीत को प्रियतम,
सबल आधार तुम दे दो।।
घटाएँ श्रावणी तुम बिन,
चली आयीं तपन लेकर।
जिऊँ तो मैं जिऊँ कैसे,
प्रतीक्षा की अगन लेकर।
जले मरुभूमि-सा यह मन,
इसे जलधार तुम दे दो।
किसी के वास्ते जाते,
हुए पल-छिन नहीं रुकते।
किये कितने जतन फिर भी,
गुजरते दिन नहीं रुकते।
भटकता मैं रहूँ कब तक,
मुझे घरद्वार तुम दे दो।
सुमन से दूर रह करके,
हुआ है पूर्ण कब मधुकर।
मिटे मेरा अधूरापन,
चली आओ दुल्हन बनकर।
अधूरा गीत हो पूरा,
मधुर झंकार तुम दे दो।