आज़ादी है अभी अधूरी
पाए न जनता रोटी पूरी
तंत्र लोक से दूर हुआ है
अवमूल्यन भरपूर हुआ है 
आज देश टुकड़ों में बँटता जीना हुआ हराम
अभी देश को लड़ना होगा एक और संग्राम 
सपनों की लाशें लावारिस
बेवस की हो नहीं गुजारिश
माली ने गुलशन मसला है
गाँधी का भारत कुचला है 
है मसजिद में मौन रहीमा और मंदिर में राम
अभी देश को लड़ना होगा एक और संग्राम 
रक्तों का व्यापार हो रहा
सदियों का आधार खो रहा
मज़हब ज़हर उगलते सारे
लगते हैं नफ़रत के नारे 
ओ सुभाष के यौवन जागो, हो न बुरा परिणाम
अभी देश को लड़ना होगा एक और संग्राम 
वन्दे मातरम् के जन-गण हम
इस माटी के कण-कण में हम
अमर  जवान न सो पाएगा
देश धर्म पर मिट जाएगा 
छीन सके न भोर का सूरज औ' सिन्दूरी शाम
अभी देश को लड़ना होगा एक और संग्राम