तीरथराज के पंथ चले, जन योजन 2 यज्ञ करै।
यमुना जल गंग-सरस्वति-संगम, प्रेमके पिंडते पित्र तरै॥
माधव को मुख देखत ही, दुख दूरि दुरै सुख पूर भरै।
धरनी धनि ते धरती में गुनी, तन-मांह तिवेनि पतीति करै॥8॥
तीरथराज के पंथ चले, जन योजन 2 यज्ञ करै।
यमुना जल गंग-सरस्वति-संगम, प्रेमके पिंडते पित्र तरै॥
माधव को मुख देखत ही, दुख दूरि दुरै सुख पूर भरै।
धरनी धनि ते धरती में गुनी, तन-मांह तिवेनि पतीति करै॥8॥