Last modified on 21 नवम्बर 2011, at 14:48

अनकही बातों को कहने से मिलेगा भी क्या / प्रेमचंद सहजवाला


अनकही बातों को कहने से मिलेगा भी क्या
मेरा महबूब तो पत्थर है सुनेगा भी क्या

किसलिए करते हो तामीर हवाओं में महल
कोई ताहश्र ज़माने में रहेगा भी क्या

गम की रूदाद मेरे चेहरे पे लिखी तो है
लेकिन अफ़सोस कोई इस को पढ़ेगा भी क्या

मेरे टूटे हुए दिल में न बना घर अपना
कोई उजड़ी हुई बस्ती में रहेगा भी क्या