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अनन्त काल तक / पद्मजा शर्मा


कल मेरे ओठों के बीच
गुलाब की कली थी देर तक
धीरे-धीरे उतर गया रंग आँखों में
समा गई ख़ुशबू साँसों में
कोमलता एहसासों में

चाहती हूँ महकना
होना मुलायम
निखरना और ज़्यादा प्यार में

कली को चाहती हूँ देखना
ओस भीगा खिलता हुआ गुलाब
जिसकी महक से महकता रहे जीवन सदा
और अनन्त काल तक
यह धरती रहे आबाद।