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अनलिखा / प्रयाग शुक्ल

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अभी चली जाएगी शाम यह
निकट अंधेरे के ।

बुझते प्रकाश में--
मोरों का बोलना
मंडराना चिड़ियों का
पत्तियों का हिलना

सिमटना आकाश का ।

साथ वही, देखो फिर
अनलिखा !