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अनाज न होने का / केदारनाथ अग्रवाल
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मेरे गाँव में भी अकाल पड़ा है
और मैं कुछ न कर सका
न किसी का पेट भर सका
न जीने का सहारा दे सका
न मर सका उनके लिए
कि वह जिएँ
भला होता
अनाज होता
मनों-टनों में
खेत में उपजा
खाने के लिए
उनके लिए
उफ! कि मैं आदमी हूँ-
कि मुझे दर्द है आदमी होने का
अनाज न होने का
रचनाकाल: १४-०७-१९६७