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अनियन्त्रित यात्री / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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अनियन्त्रित यात्री
अँखुओं पर-
पाँव धरें।

कंठ अकेला-कड़ा
करे क्या?
कोलाहल में पड़ा;
पुकारें किसे
सुनेगा कौन एक की-
बात
कहाँ फुरसत है,
सभी मुड़ रहे उधर
जिधर भारी बहुमत है,
नक्षत्रों की चर्चा ही क्या:
बड़े बड़े सूरज
ज्योतिर्मय
जुगुनू के घर-
पानी भरें।