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अनुगीत-7 / राजकुमार
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वीतरागी आय मन रोॅ गाम हमरोॅ
शीत के अकबार में छै धाम हमरोॅ
भोर के बेला कहाँ अब काग बोलै
बाँग भी गुमसुम चहक छै बाम हमरोॅ
घास छै बिंधलोॅ कुहासा सें सफर में
कोय हत्यारिन हवा छै ठाम हमरोॅ
गोड़ में फंदा भ्रमर के कुंद कातर
पत्र में काँटा समदलोॅ नाम हमरोॅ
‘राज’ नै रुकतै समय रोॅ गीतलहरी
शंख के भाषा सुखद परिणाम हमरोॅ