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अनुग्रह स्वीकार / राजकमल चौधरी
Kavita Kosh से
इचूल्हामे जुनि ढारू तेल किरासन, नइँ झोंकू गोइठा
बान्हू कसि कए फूजल अछि खोपा, टूटल अछि अँइठा
देखू, छोलनी बहुत तपत अछि, पाकए ने आँगुर
जल्दी झोर दिअउ, बड्ड नेहसँ अनलउँ माँगुर
लाल भेल अछि चेहरा, आँचरसँ पोछू घाम
नइँ कीनि भेल, एखनउँ बड़ महग बिकाइ छइ आम
इह, बड़ बड़बड़ाइ छथि, मुदा, आइ नइँ देबनि उत्तर
केहनो छथि, अनने छथि बजारसँ साड़ी सुन्दर