भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनुपस्थित / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस फ़ोटो में तीन लोग है
स्त्री दिखाई नही दे रही है
लेकिन वह अनुपस्थित नही है
वह एक लुप्त नदी की तरह
उन दोनों के बीच बह रही है
जिन चीज़ों को हम देख नही पाते
वे हमारे बीच रहती हैं
हवा को हम देख नही पाते
लेकिन वह हमें जगह-जगह से
छूती है
स्त्रियाँ भले ही हमसे दूर या अदृश्य हों
वे हमारे भीतर मौजूद रहती हैं ।