भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनुभूतियाँ / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सचमुच हमारी अनुभूतियाँ
नाव के चप्पू की तरह बदल जाती हैं हर पल
लगता है पानी सारे द्वार खोल रहा है ख़ुशियों के

चीजें त्वरा के साथ आ रही हैं जा रही हैं
गाने की मधुर स्वर लहरियाँ गूँजती हुई रेडियो से
मानों झील के भीतर से ही आ रही हों

हम पानी के साथ
बिलकुल साथ-साथ
और नाव को धीरे-धीरे बढ़ाता हुआ नाविक
मिला रहा है गाने के स्वर के साथ अपना स्वर
और हम डूब चुके हैं पूरी तरह से
यहाँ की सुन्दरता में।