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अनुभूतियाँ / नरेश अग्रवाल
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सचमुच हमारी अनुभूतियाँ
नाव के चप्पू की तरह बदल जाती हैं हर पल
लगता है पानी सारे द्वार खोल रहा है ख़ुशियों के
चीजें त्वरा के साथ आ रही हैं जा रही हैं
गाने की मधुर स्वर लहरियाँ गूँजती हुई रेडियो से
मानों झील के भीतर से ही आ रही हों
हम पानी के साथ
बिलकुल साथ-साथ
और नाव को धीरे-धीरे बढ़ाता हुआ नाविक
मिला रहा है गाने के स्वर के साथ अपना स्वर
और हम डूब चुके हैं पूरी तरह से
यहाँ की सुन्दरता में।