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अनुभूतियाँ / प्रगति गुप्ता
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अनुभूतियाँ
अच्छी हो या हो बुरी
दिल से होकर ही गुजरती है...
शब्द तो मात्र जरिया है
इनको कह देने के ...
जब कभी ये ठहर जाये
होठों पर आकर तब यह,
आँखों से छलकती हैं...
अनुभूतियाँ दिल में
कुछ इस तरह बिनी होती हैं ...
जो महसूस तो हो कहीं गहरे तक,
पर बयाँ होते ही
अपने आकार खो देती हैं...
जिनके दिलों से दिल मिले होते है
उन्ही के दिलों में बगैर कहे
ये हूबहू उतर कर
उनके साथ-साथ चला करती हैं...
अनुभूतियाँ कुछ इस तरह
सिर्फ दिलों से महसूस हो
करीबी दिलों तक ही
सफ़र तय किया करती हैं...