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अनुराग / साधना सिन्हा
Kavita Kosh से
थम गई गति
कुछ सोच रहा हूँ
रुका नहीं हूँ
पहचान रहा हूँ
अर्थ खो चुकीं
चीज़ें, घटनाएँ
दुख, आह्लाद
हो गया सबसे
परे अवसाद
सुख धीमा-बेस्वाद
हर रोज़ की सुबह-सा
उगा, उठा और डूब गया
बैठा किनारे को
अवलोकता-सा निस्पृह
दुख
गुज़रती हवा के
गर्म झोंके-सा
व्यापक एक भाव
शान्त-
बुद्ध का हो जैसे हाथ
शिव का हो
जैसे अनुराग