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अन्तर्दाह / पृष्ठ 37 / रामेश्वर नाथ मिश्र 'अनुरोध'

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मेरे गीले गालों पर
फूटे पल्लव की लाली
जीवन-पथ चमक रहा हो
दुबकी हो रजनी काली ।।१७६।।
 
जीवन सरिता बहती है
दुख-सुख जिस के दो तट हैं
वेदना लहरियाँ जिस की
आवर्त्त विरह - झंझट हैं ।।१७७।।

दुख ही है सत्य जगत में
सुख है केवल कुछ दिन का
सुख-दुख के चक्र निरन्तर
चलते, स्थिर सुख किनका ? ।।१७८।।

इस क्षणभंगुर जीवन में
दुख ही है सत्य चिरंतन
ओ मेरे उर के वैभव
तेरा शत-शत अभिनंदन ।।१७९।।

दुर्दांत विरह का कटु फल
लटका है क्षणिक भुवन में
आनंद कहाँ मिल सकता
इस छोटे से जीवन में ? ।।१८०।।