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अन्तर मेरा विकसित करो / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सुलोचना वर्मा
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अन्तर मेरा विकसित करो
अन्तरतर हे !
निर्मल करो, उज्ज्वल करो,
सुन्दर करो हे !
जाग्रत करो, उद्यत करो,
निर्भय करो हे !
मंगल करो, निरलस नि:संशय करो हे !
अन्तर मेरा विकसित करो,
अन्तरतर हे ।
सबके संग युक्त करो,
मुक्त करो हे बन्ध,
सकल मर्म में संचार करो
शान्त तुम्हारे छ्न्द ।
चरणकमल में चित्त मेरा निस्पन्दित करो हे,
नन्दित करो, नन्दित करो,
नन्दित करो हे !
अन्तर मेरा विकसित करो
अन्तरतर हे !
मूल बांगला से अनुवाद : सुलोचना वर्मा
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