अन्तिम आकाँक्षा / मूसा जलील / भारत यायावर
मुझे डर लगता है
मुझे लगता है कि मूढ़ मृत्यु
जल्दी ही पराजित कर देगी मुझे !
भूख कमजोर कर रही है
जुओं से भरे कपड़े
और ऊपर से हड्डियों को ठिठुराने वाली ठण्ड
जैसे जाड़े में ठिठुर कर मर जाता है कोई बूढ़ा भिखारी
बिल्कुल अकेला !
मित्रों या सगे-सम्बन्धियों के सुख-चैन से दूर
बिल्कुल अकेले
मृत्यु दबोच लेगी मुझे!
मेरी आकाँक्षा थी
युद्ध के घमासान में
एक वीर योद्धा की तरह धराशाई होना
राइफ़ल की बुलेट से मरना
एक शानदार मौत !
किन्तु क़ैदख़ाने की यह नीरस नियति
और मेरी अकेली ज़िन्दगी
जैसे एक टिमटिमाता दिया
जिसकी लौ लगातार क्षीण होती जाती है !
मैं एक आदमी था आशाओं से भरा
मैं उपलब्धियों की ऊँचाई छूना चाहता था
मैं बहुत-कुछ करना चाहता था
पर मेरी सभी आकाँक्षाएँ धूल-धूसरित हो गई हैं
यह सच है कि मैं मरना नहीं चाहता !
अपने से सवाल करता हूँ —
क्या मैंने पर्याप्त जीवन जी लिया ?
इतनी बड़ी दुनिया में बहुत कुछ कर लिया?
मैं सोचता हूं कि अगर मेरा जीवन लम्बा होता
तो महान मूल्यों के लिए इसे समर्पित कर देता !
आज अपनी धमनियों में बहते लहू में
ऐसी पीड़ा और जलाती हुई आग
महसूस कर रहा हूँ
आज़ादी के लिए तड़प
मगर इस आपदा के नरक में
ख़ुद को भस्म कर देनेवाला क्रोध !
और घृणा !
और प्रेम !
अपनी ज्वाला से महातरँगित हृदय की राह पा चुका हूँ
कि मेरा जीवन असफल हो गया है
इस ज्वाला को अपनी मातृभूमि को सौंपने में असमर्थ हूँ
यह सोचकर अन्तहीन पीड़ा से भर जाता हूँ
मातृभूमि के लिए मरना गौरव है
मातृभूमि के लिए मरना
दुखदाई या भयभीत नहीं करता
किन्तु मुझे शर्म आती है
और मैं झेंपने लगता हूँ
क्योंकि मैं भूख और तकलीफ़ से मरूँगा !
फिर भी मैं जीना चाहता हूँ
अन्तिम दम तक अपनी मौत से जूझना चाहता हूँ
ताकि हृदय की हर धड़कन
न्यौछावर कर सकूँ
इस तात्पर्य से :
"मातृभूमि !
तुम्हारी खातिर
अपनी जान
समर्पित करता हूँ !"
तभी अपनी टूटती सांसों के बावजूद
मैं ख़ुशी से सांस ले सकूँगा ।
(रूसी तातार कवि मूसा जलील ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाज़ी सेना की क़ैद में यह कविता लिखी।)
अँग्रेज़ी से भावान्तर : भारत यायावर