अन्तिम रेखाएँ / पामेला मॉर्देकाइ / राजेश चन्द्र
यह है वह अन्तिम रेखा जो मैंने खींची है ।
ठीक है । चलो, खींचकर देखो अन्तिम रेखा ।
लेकिन, मैं तुमसे कहती हूँ, वहाँ
एक अगली भी है । कोई भी रेखा होती नहीं अन्तिम,
कोई मौत नहीं हमेशा के लिए कुछ भी नहीं ।
तुमने देखी यह जगह ? तुमने देखा इसे ?
इस सबको ? यह देखना अच्छा है ।
न तो कोई कण और न ही कोई बून्द
नष्ट होने वाली है । हरेक बूढ़े
मरोड़ खाते आदमी को तुम देखते हो,
प्रत्येक झूलते स्तनों वाली स्त्री को,
हरेक बढ़े पेट वाले बच्चे को ।
प्रत्येक युवा सैनिक को
जो झटकता है अपना सिर
तम्बाकू, सफ़ेद पाउडर,
काले पाउडर, या वास्तव में
अत्यन्त घिनौनी प्रतीति के साथ
शैतान की — उसके लिए नहीं
शय्याग्रस्त होता वह तुम्हें पता है —
बच्ची से स्त्री में ढली वह हरेक स्त्री
जिसे टाँग देते हो तुम
अपनी कामुकता के सलीब पर
इससे पहले कि उसके छोटे चीकुओं में
आरम्भ हो आना मिठास का,
मैं शपथ खाकर कहती हूँ,
प्रत्येक अंतिम के बाद भी
अस्तित्व रहेगा ही किसी न किसी का ।
खींचो इसलिए, हे राज्याधिकारी,
प्रधानमंत्री, धर्माधिकारी,
शिक्षक, दूकानदार,
राजनीतिज्ञ, व्याख्याता,
हे प्रचण्ड क्रान्तिकारियो,
अत्यन्त सावधानी से खींचो
वह अन्तिम बारीक़ रेखा
जिसके लिये जवाबदेह हो तुम ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र