अन्तिम सत्य / शम्भुनाथ मिश्र
आमहिकेर मास रहै, अपन गाम गेल रही
भेट भेला मीत कका
गामक सम्पन्न ओ सुभ्यस्त आ दयालु लोक
पैर छूबि गोड़ लागि बैसि हम मचाने पर
कुशल-क्षेम, लोक-वेद, टोल आ पड़ोसक सब
हाल-चाल जानि जखन पूछल हम काकासँ,
संयम परिश्रमसँ अर्जन तँ कयल बहुत,
सुयश ओ प्रतिष्ठासँ गाम गौरवान्वित अछि
किन्तु स्वयं कहल जाय
आबहु की अपनेँ केँ अभिलाषा बाँकी अछि?
कहलनि जे संयम आ उद्यमसँ धनक संग
आदर प्रतिष्ठासँ पूरा संतुष्ट छी
तैयो जँ पूछै छी चंचल मन भीतरसँ
बेर-बेर कहैछ यैह, इच्छा केर अन्त बुझू
जीवनकेर अन्त भेल,
तदपि एक इच्छा अछि
जीवन नहि मृत्युक पश्चातक ओ इच्दा जे
देखब नहि, सूनब नहि, बूझब नहि, जानब नहि,
तैयो अछि मोनेमे औनाइत बस एक बात
नश्वर संसार मध्य मिथ्या थिक लोभ-मोह
मिथ्या थिक लोक-वेद,
मिथ्या थिक संसारक उपभोगक वस्तु सकल,
तखन सत्य थीक की?
शास्त्र ओ पुराण सत्य, सत्य सकल धर्मशास्त्र
सत्य थिक गीताकेर सूक्ति, संतकेर उक्ति
ताहि उक्ति ताहि सूक्ति धर्मशास्त्रकेर मतेँ
श्राद्ध कर्म हो पवित्र,
शुद्ध-शुद्ध मन्त्रक उच्चारणसँ होइ धन्य
धन्य होय देवलोक, पितर लोक होय धन्य
देव-पितर सबहक आशीष पाबि होइ धन्य
पुनर्जन्म धारण नहि करऽ पड़य बेर बेर
यैह हमर अन्तिम अछि इच्छा एतबा बजैत
शून्य दिस तकैत कका शून्येमे डूबि गेला
चिन्ताकेर सागरमे उबडुब करैत,
दीर्घ श्वास लैत भीतरसँ
आत्माक तरंग जेना बाजि उठल अन्तरमे,
यैह थिकै दुनिया आ सत्य एकमात्र यैह,
अश्रुपूर्ण नेत्रहिसँ काकाकेँ गोड़ लागि
तत्क्षण प्रस्थान कयल
मनमे गुनि-धुनि करैत।