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अन्दाता रो भाग / कुंदन माली
Kavita Kosh से
अन्दाता सूं बस्ती मुल़कै
अन्दाता सूं नगरी हरखै
अन्दाता सूं हालै रूंख
अन्दाता मत जाज्यो चूक
अन्दाता मोटर में बैठे
अन्दाता आभै पे लेटै
अन्दाता सूं है कल़पाण
भांत-भांत रा बसिया लोग
अन्दाता थे लीज्यो छाण
अन्दाता री चोखी बोली
अन्दाता री चोखी टोल़ी
घरां आय बैठी है होल़ी
अन्दाता थे दीज्यो ध्यान
अन्दाता री काया जबरी
अन्दाता री निजर गजब री
अन्दाता उलट्या है लोग
अन्दाता क्यूं उलट्या लोग ?
अन्दाता रै भूत कमावै
अन्दाता जग नै बिलमावै
अन्दाता थे पैली बार
धरो म्यान में क्यूं तलवार ?
अन्दाता बस्ती है जागी
अन्दाता री नींदा भागी
अन्दाता रै घरां पूगियो
इणी भांत रोपैलो फाग
अन्दाता ओ कैड़ौ भाग ?