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अन्धकार की चुप्पी में / केदारनाथ अग्रवाल
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अंधकार की चुप्पी
बंधे हुए
जूड़े-सी चुप है,
और तरल है
अतल सिन्धु-सी ;
मैं
इस चुप्पी के
जल-तल में
पूरा डूबा,
खोज रहा हूँ
बिछुड़ी मछली--
वह जो मुझ से
छूट गई है ।
जैसे घन से
लिपटी बिजली
छूट गई है ।