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अन्हरिया / देहरी / अर्चना झा
Kavita Kosh से
आय घूप्प अन्हरिया छितरैलोॅ छै
मोॅन बौखलैलो छै
किरण जेना की बागी होय गेलोॅ छै
आरो जेठोॅ नाकी दिल तपी रहलोॅ छै
हर तरफ लाशे-लाश छै
हमरोॅ सपना के
कैह्नै कि हम्मे बेटी छिकिएॅ