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अपना जल्वा फिर दिखाने आ गये / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'
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अपना जल्वा फिर दिखाने आ गये।
नींद आँखों की उड़ाने आ गये।
आज उनके हुस्न के दरबार में,
हम भी क़िस्मत आज़मा ने आ गये।
उनसे मिल पाना न था मुमकिन मगर,
काम कुछ झूठे बहाने आ गये।
वो गले लगने को थे पर या खुदा,
बीच में गु़जरे ज़माने आ गये।
लाल ये धरती न होगी अब कभी,
हम दिलों से दिल मिलाने आ गये।
म्यान में तलवार रख ली हमने, जब,
याद कुछ रिश्ते पुराने आ गये।
पहले ज़ख़्मी कर दिया ‘विश्वास’ को,
फिर सनम मरहम लगाने आ गये।