अपना दर्द किसी से नहीं
हर्गिज कहना है
नागों के साथ हमें
आजीवन रहना है।
अपने दर्द को जो भी
इधर-उधर कहते हैं।
सबसे अधिक दुखी
सिर्फ़ वे ही रहते हैं।
दर्द का क्या, नदी-सा
एक दिन बह जाएगा।
और पीछे सिर्फ़ कुछ
रेत ही रह जाएगा।
दुनिया में रहने के लिए
कुछ तो सहना है।
नागों से क्यों डरें-
वे किसी को तो डँसेंगे
उनके मोहपाश में
कुछ तो जरूर फँसेंगे।
डँसे जाने पर भी
इस जहर को हटाना है
ढूँढकर कहीं से भी
सुधा हमें ही लाना है।
सबके दिलों में रात-दिन
सुधा बन बहना है।। ङ
(30-5-99ः आकाशवाणी अम्बिकापुर-20-12-99, सवेरा संकेत दीपावली विशेषांक-2000)