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अपना दिल पेश करूँ, अपनी वफ़ा पेश करूँ / साहिर लुधियानवी

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अपना दिल पेश करूँ, अपनी वफ़ा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं आता तुझे क्या पेश करूँ
अपना दिल पेश करूँ...

तेरे मिलने की ख़ुशी में कोई नग़मा छेड़ूँ
या तेरे दर्द-ए-जुदाई का गिला पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं...

मेरे ख़्वाबों में भी तू, मेरे ख़यालों में भी तू
कौन-सी चीज़ तुझे तुझसे जुदा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं...

जो तेरे दिल को लुभाए वो अदा मुझमें नहीं
क्यों न तुझको कोई तेरी ही अदा पेश करूँ
कुछ समझ में नहीं...