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अपना प्यार न जाने कितने दिन का है / सुरेन्द्र सुकुमार

अपना प्यार न जाने कितने दिन का है,
एक जनम तो, पल दो पल दो छिन का है ।

शब्द शून्य उतरा जब तुम उतरे हो ,
तुमसे ही सरगम के स्वर सब आए हैं ।
सारे जग में भाषा का उन्मेष हुआ
जब तुमने कुछ गीत प्यार के गाए हैं

जीवन का संगीत तो ता था धिन का है
एक जनम तो पल दो पल दो ......।

छुअन तुम्हारी प्राणों को गति दे जाए,
सांसों में स्पन्दन सौन्धा-सौन्धा हो ।
एकाकी मन के जँगल में मत भटको
अपने सपनो का भी एक घरौंदा हो ।

देखो, चिड़ियों की चौं-चौं में तिनका है
एक जनम तो पल दो पल दो …..।

रूप तुम्हारा कलियों को भी शर्माए
गन्ध तुम्हारी हिरनों को भी भरमाए ।
ज्योति तुम्हारी किरनों को फीका कर दे
और स्वरों से ओंकार ध्वनि थम जाए ।

मेरा अपना नहीं भाव अनगिन का है
एक जनम तो पल दो पल दो …..।