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अपनी कविता के बारे में / नाज़िम हिकमत / अनिल जनविजय

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मेरे पास
         ऐसी काठियों वाले घोड़े नहीं हैं
                 जिनकी काठियों पर जड़ा हुआ हो
          सुनहरा कामदार - बूटियों वाला कपड़ा ।

मैं किसी पुराने
            और बड़े ख़ानदान का हूँ
                           यह शेखी भी
                           मैं नहीं बघार सकता ।

मेरे पास न धन है
                    और न जायदाद,
मेरे पास तो है सिर्फ़ एक प्याला शहद
सूरज की तरह सुनहरे रंग का शहद
सिर्फ़ शहद ही है मेरे पास, मेरी सारी सम्पदा ।

जिसे मैं बचा रहा हूँ सारे कीड़े-मकौड़ों से
यही है मेरा खज़ाना और मेरी जायदाद
शहद से लबालब भरा यह प्याला !

मेरे भाई ! इन्तज़ार करो कुछ देर, उम्मीद रखो
बस, मेरे प्याले में बना रहे आग के रंग का यह शहद
तो बग़दाद से भी
                   आ जाएँगी मधुमक्खियाँ !

१९३२