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अपनी खिड़की से / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
मैं अपनी खिड़की से पुकारना चाहता हूँ
कि सामने के चर्च में
प्रार्थनाओं और दीपशिखाओं के बीच
ईश्वर हो सके;
कि सामने के वृक्षों पर
हरियाली और धूप हो सके;
कि आकाश अपनी धूमिलता छोड़कर
नीला निरभ्र हो सके;
मैं पुकारना चाहता हूँ
कि दरवाज़ा खुले
अन्दर आए रोशनी;
कि मेरी पुकार
प्रार्थना बनकर टिक सके;
फूल बनकर खिल सके।
आँसू बनकर झर सके।