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अपनी जिंदगी का हमेशा यह आलम है / सांवर दइया

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अपनी जिंदगी का हमेशा यह आलम है,
सुबह मिले राजी खुशी,शाम को मातम है!

अब किस नाम से पुकारें इन लम्हों को हम,
अभी थिरकती थी हंसी, अभी आंखे नम हैं!

इस तरह रहे वे हम पर मेहरबान सदा,
महफ़िल में मुहब्बत ज़ाहिर, घर में सितम है!

वे ऐलान कर चुके अब पाबंदियां नहीं,
बाहर बेखौफ़ सभी, भीतर डर हर दम है!

परवाज को उठे परिंदे गिर गये उसी पल,
इनायते-मौसम ज्यादा दुश्मनी कम है!