अपनी जुबान खोलो तो / माखनलाल चतुर्वेदी
अपनी जुबान खोलो तो
हो कौन ज़रा बोले तो!
रवि की कोमल किरणों में
प्रिय कैसे बस लेते हो?
नव विकसित कलिकाओं में
तुम कैसे हँस लेते हो?
माधव की पिचकारी की
बूँदों में उछल पड़े से,
आँखों में लहलह करते
मोती हो मधुर जड़े से!
हैं शब्द वही, मधुराई
किससे कैसे छीनी है?
छानोगे किस छलिया को
छवि की चादर झीनी है?
बाँसुरिया कहाँ छुपाई
कैसे तुम गा देते हो?
कैसे विन्ध्या की गोदी
वृन्दावन ला देते हो?
क्या राग तुम्हारा जग से
बेराग बनाये देता?
बरसों का मौन मिटाकर
"आहा" कहलाये देता!
जी को, तेरे गीतों में
बरबस गुँथवाये देता,
प्राणों का मोह छुड़ाता
कैसा आमंत्रण देता!
तू अमर धार गायन की,
द्युति की तू मधुर कहानी,
भारत माँ की वीणा की
तेजोमय करुणा-वाणी!
हीतल में पागल करने
जिस समय ज्वार आता है,
उस दिवस तरुण सेना में
बलि का उभार आता है।
जिस दिन कलियों से तुझको
आन्तरिक प्यार आता है।
उस दिन उनके शिर, माँ के
चरणों उतार आता है।
आँखों की नव अरुणाई
पीढ़ी में मंगल बोती,
गुरु शुक्र उदित हो पड़ते
लख तेरी शीतल जोती;
तम में खलबली मचाता
रे गायक! क्या तू कवि है?
दाँवों में तू योद्धा है!
भावों में वीर सुकवि है!