भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी धरती के बारे में / रसूल हम्ज़ातव / मदनलाल मधु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी धरती के बारे में
कहना चाहा बहुत, नहीं कुछ भी कह पाया,
भरी खुरजियाँ संग लिए हूँ
हाय मुसीबत, मैं तो उनको खोल न पाया !

अपनी भाषा में दुनिया का
गाना चाहा गीत, मगर मैं गा न पाया,
लादे हूँ, सन्दूक पीठ पर
हाय मुसीबत, ताला पर न खुला खुलाया !

रूसी भाषा से अनुवाद : मदनलाल मधु