तुमसे पहले 
यहाँ बहुत कुछ हो चुका है 
यह सनातन समाज 
अनगिन बार 
रक्त के आंसू पी चुका है 
समाज के विविध रंग 
जीने के विविध ढंग 
कई बार साँसों पर भी लगा पहरा 
लोगो ने ईश्वर को भी कहा बहरा 
इस धरा ने एक राजकुमार को 
उसके राजकुमार होने का 
छिनते देखा है अधिकार 
कुछ भी कर पाया 
मिल कर भी पूरा परिवार 
लेकिन इसी दृश्य में 
कुलगुरु ने खोज लिया था न्याय 
सीता के सम्मुख रख दिया 
अयोध्या की साम्राज्ञी बन जाने का प्रस्ताव 
यह अलग बात है कि 
सीता ने चुना अपना ही विकल्प 
पति के साथ वन जाने का संकल्प 
वह ज्ञान था गौतम 
जिसका गुरु वशिष्ठ ने किया प्रयोग 
न्याय की रक्षा के लिए 
सनातनता की सुरक्षा के लिए 
उन्होंने सलीके से अपना धर्म निभाया 
आक्रोशित कुलगुरु के आगे कोई नहीं आया 
वशिष्ठ ने कैकेयी को भी फटकारा था 
उनकी आखो में इतरा अंगारा था 
जनक नंदिनी की वन यात्रा खल रही थी 
ह्रदय में क्षोभ की ज्वाला जल रही थी 
गौतम 
वह केवल सीता नहीं भारत की नारी थी 
गुरु के निश्छल ज्ञान पर भी भारी थी 
उसने सनातन परंपरा को ही चुना 
पत्नीधर्म को ही गुना 
माता और भ्राता ने धारण किये 
बलकल वस्त्र 
राम ने उठाये अपने शस्त्र 
शिव ने भी देखा था अपने आराध्य 
राम को सीता के साथ 
 तुम्हें क्यों नहीं हो सका यह ज्ञात 
यदि वे अकेले गए होते 
तो राम न बन पाते 
रावण को मार कर भी 
भगवान् न बन पाते 
 तुम्हें जाना था? बेशक जाते 
मुझे चाहे न भी बताते 
पर कुछ गुना तो होता 
अपनी सनातनता से कुछ चुना तो होता।