लम्ब पर लम्ब
खड़े कर दिए
हमने
पेट पर
लकीरों के,
यश की शहतीरों के,
फिर भी हम
बेघर और भूखे हैं
अपनी ही ठठरी में
सूखे हैं।
रचनाकाल: ३१-११-१९७१
लम्ब पर लम्ब
खड़े कर दिए
हमने
पेट पर
लकीरों के,
यश की शहतीरों के,
फिर भी हम
बेघर और भूखे हैं
अपनी ही ठठरी में
सूखे हैं।
रचनाकाल: ३१-११-१९७१