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अपनी ही ठठरी में सूखे हैं / केदारनाथ अग्रवाल

लम्ब पर लम्ब
खड़े कर दिए
हमने
पेट पर
लकीरों के,
यश की शहतीरों के,
फिर भी हम
बेघर और भूखे हैं
अपनी ही ठठरी में
सूखे हैं।

रचनाकाल: ३१-११-१९७१