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अपने ख़ुदा से जब-जब भी हम अपना मुक़द्दर माँगेंगे / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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अपने ख़ुदा से जब-जब भी हम अपना मुक़द्दर माँगेंगे ।
और भले ही कुछ न माँगें, तुम्हें उम्र-भर माँगेंगे ।

अब के सावन से हम भी फूलों का बिस्तर माँगेंगे,
बारिश की गीली मिट्टी से छोटा-सा घर माँगेंगे ।

अब की बार घटाएँ जब भी घर की छत पर उतरेंगी,
अपनी प्यास सामने रख कर सात-समन्दर माँगेंगे ।

खोना-पाना एक बराबर जिसमे हो महसूस हमें,
हम अपने महबूब से ऐसा जादू-मन्तर माँगेंगे ।

इश्क़ हुआ था जिस लम्हा हम तब ही जान गए थे ये,
कटा हुआ अपना सर देकर, झुका हुआ सर माँगेंगे ।

मील का पत्थर तुम कहलाओ यही दुआ देकर तुमको,
हम अपने ख़्वाबों की ख़ातिर नींव का पत्थर माँगेंगे ।

जिनमे प्यार के तिनके-तिनके जोड़ के रक्खें जाते हैं,
हवा दिखाए ख़ौफ़ भले हम वो ही छप्पर माँगेंगे ।