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अपने दोस्तों के बीच ईश्वर-1 / पवन करण

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तुमसे नहीं, तो मैं अपने मन की किससे कहूँ
किन्हें सुनाऊँ अपना रोना, क्या उन्हें जो मुझे
बस पूजना जानते हैं, पहचानना नहीं
पता नहीं मुझे रोता देख वे क्या समझ बैठें
शुरू कर दें अपने ही जैसों का कत्लेआम,
और कहें, कैसे ईश्वर हो,
ईश्वर की भी कोई व्यथा होती है

व्यथा हमारी होती है तुम्हारा काम
व्यथा सुनना है, सुनाना नहीं
ईश्वर हो तो ईश्वर की तरह रहो
हम तुमसे इतनी उम्मीद लगाए बैठे हैं
तुम हो कि हमारी तरह हुए जा रहे हो
इधर मुझे तुमने भी अपने बीच बैठाना
बंद कर दिया, दोस्त की शक़्ल में
मेरी शक़्ल भूल ही गए तुम
तुम भूल गए हमारे बीच हमेशा
एक ग्लास मेरा भी भरा जाता था
ये भी कि मैं धीरे-धीरे सबसे ज्यादा
चिखना चर जाता था, मुझसे बचाने
जिसे रख लेते थे तुम उठाकर, जो तुम्हें
कई बार पड़ता था दोबारा मंगाना

तुम्हें लगता होगा, मैं ईश्वर हूँ मुझे क्या कमी
मगर ईश्वर होकर भी मेरी हालत
उतनी ही ख़राब है जितनी तब,
जब मेरा खर्च उठाया करते थे सब
खर्च उठाने में अपना, मैं आज भी सक्षम नहीं,
तुम सोचते होगे, या तो मैं तुम्हें
भूल गया, या तुमसे मिलता नहीं
मगर ऐसा नहीं कतई, ईश्वर होकर
मैं तो अपना चेहरा ही भूल गया
आँख बचाकर तुम सबके बीच आया हूँ
तो खुद को याद आ रहा हूँ कुछ-कुछ
इस बीच तुमने भी नहीं पूछा आकर,

कैसा हूँ मैं ईश्वर होकर तुमने सोचा,
अब मुझे क्या ज़रूरत तुम्हारी? मगर
ईश्वर होना दोस्त होने से बेहतर नहीं
कोई ईश्वर, दोस्त से बड़ा नहीं हो सकता
ईश्वर किसी का दोस्त भी नहीं हुआ कभी,
ईश्वर के लिये किसी को याद रख पाना
संभव नहीं अब, भीड़ इतनी है उसके पास
बड़े से बड़ा ईश्वर भी नहीं पहचान सकता
उसका दुश्मन कौन है ओैर दोस्त कौन
उसे अब सब चेहरे एक से नजर आते हैं,
आज तो हुआ यह मैं रहता हूँ जहाँ
उसके पीछे मुझे कुछ आहट दी सुनाई
मैंने देखा तो मुझे अपने ही जैसे
कुछ दोस्त दिखे पैग बनाते, मस्ताते
और एक दूसरे को गालियाँ सुनाते

तुम तक मुझे उन्हीं ने पहुँचाया, वे हमें
अच्छी तरह थे पहचानते, हो सकता है
उनके साथ बैठकर पी हो हमने कभी
उन्होंने यह भी बताया उनका एक दोस्त
और भी था, जो अब ईश्वर हो गया है,
लेकिन वह उनके लिये कुछ करता नहीं
इतना भी नहीं, वह उनके लिये दारू की
कुछ बोतलें ही भिजवा दिया करे
उसके लिये कौन सी बड़ी बात है, ईश्वर है
मैं समझ गया वे मेरी बात कर रहे थे