अपने रहन सहन की खातिर मनै ऐसा संविधान बनाया है / मेहर सिंह
परिक्षित से कलयुग न्यूं बोल्या ईब राज मेरा आया है
अपने रहन सहन की खातिर मनै ऐसा संविधान बनाया है।टेक
सोने कै तै काई लाद्यूं आंच साच कै कर द्यूंगा
वेद शास्त्र उपनिषदां नै सतयुग खातिर धर द्यूंगा
सत्पुरुषां नै नहीं ठिकाणा चोर उचक्के भर द्यूंगा
राह सर चालणियां माणस की तै रे रे माटी कर द्यूंगा
धड़ तै नाड़ कतर द्यूंगा जिन्हें गुण प्रभु का गाया है।
मेरे राज मौज करेंगे ठग डाकु चोर लुटेरे
हरि ओम का नाम हो उड़ै उजड़ कर द्यूं डेरे
ले कै दे ना कर कै खाना वे सेवक होंगे मेरे
पापी माणस की अर्थी पै जांगे फुल बखेरे
उनके कर द्यूं गहरे जिस नै बेहद पाप कमाया है।
साच बोलणिया मेरे राज मैं जीवण का हकदार नहीं
दा पै दा और पेट का काला उस माणस की हार नहीं
जै कोए साचा साची कहै दे उस पै सोच विचार नहीं
गरीब आदमी सच्चे सेवक की किते बसावै पार नहीं
उस कै लागै लार नहीं वो धर्म कर्म पै छाया है।
राह सर चालै तै ऐंठ काढ़ द्यूं ये कलयुग का ब्यान होगा
छल नीति से बात करै उसका आदर मान होगा
उतनी इज्जत चढ़ै शिखर जितना बेईमान होगा
गुरु लखमीचन्द गरीब आदमी का साथी ना भगवान होगा
कह मेहर सिंह वो धनवान होगा जिन्है बेइमाने का खाया है।