अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
धरती की प्यास बुझ न सकेगी सहाब से
सारी दुआएं हो गई लगती हैं बेअसर
अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
सू-ए-फ़लक भी देखिये तो किस उमीद पर
क्या तिश्नगी बुझी भी कभी है सराब से
अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
धरती की प्यास बुझ न सकेगी सहाब से।