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अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर / रमेश तन्हा
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अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
धरती की प्यास बुझ न सकेगी सहाब से
सारी दुआएं हो गई लगती हैं बेअसर
अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
सू-ए-फ़लक भी देखिये तो किस उमीद पर
क्या तिश्नगी बुझी भी कभी है सराब से
अपने ही आंसुओं से करो अब लबों को तर
धरती की प्यास बुझ न सकेगी सहाब से।