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अपनों की जब शह पायेगा / हरि फ़ैज़ाबादी

अपनों की जब शह पायेगा
गै़र तभी कुछ कह पायेगा

आँखों में जो नहीं समाया
दिल में कैसे रह पायेगा

महल ख़्वाब का चाल समय की
आख़िर कब तक सह पायेगा

नाव रोक दे तू लहरों के
साथ कहाँ तक बह पायेगा

जगहें भरना अलग बात है
किसकी कौन जगह पायेगा