भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपमान / शंख घोष / जयश्री पुरवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गान पल भर में धूल में मिल गए
चारों ओर हो रही है इतनी ज़बरदस्त उछल-कूद —
इसी बीच बहकर जाना होगा, इसीलिए
कान में रूई ठूँस ली है और पीठ पर भी बाँधा है सूप ।

तुमने सोचा था
कि अपमान छूट जाएगा
दो बातें सुनाकर सुख मिलेगा — सोचा था ।

आँख की ओट में
अश्वत्थ की डाल पर
एक तीर से हो जाएँगे दो शिकार — सोचा था ।

एक चिड़िया मरी भी है । पर वह मेरी नहीं ।
मेरी चिड़िया तो छुपी हुई है नाव के पानी में ।
यह ज़रूर जानता हूँ कि जो कुछ भी आज छुपा हुआ है
तुम सभी पा जाना चाहते हो उसे अपने छल-बल व कौशल से ।

लज्जा भी नहीं आती अपना वह चेहरा देखकर ?
कहकर फ़ोन रख दिया झम से
इस बारे में और ज़्यादा कुछ न कहूँगा
जो कहने को था आखिर कह दिया एक शब्द में ।

बहुत सावधानी से खेनी होगी नाव
क्योंकि ठाठ-बाट से सजग हो बैठे हैं घड़ियाल
कविता में अगर कहानी छुपी हुई है
तो उसे झट से निगल जाएगा सीरियल ।

मूल बांग्ला से अनुवाद : जयश्री पुरवार