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अपराधों का बयान / ओएनवी कुरुप
Kavita Kosh से
आज राह चलते दिखाई दी दीनता
और सुनाई पड़ा रुदन
मेरा पीछा करती है
जो अब भी मेरे दिल में हैं
वह पीडा
शायद अदृश्य सलीब है
मेरी आत्मा की स्वर्णिम मूर्ति
उसे वहन करती हैं
इस दोरुखी जीवन में
मुश्किल रास्तों से
गुज़रते हुए
मुझे दिल की बात
सुनाई देती है
दूसरों के दर्द में
तेज़ होती है मेरे दिल की धड़कन
शायद यही है मेरा बल
और मेरी दुर्बलता
मै अच्छे दिनों और अच्छे लोगों का
स्वप्न देखता हूँ
शायद यही है मेरी बीमारी
क्या इसका कोई इलाज है
छूने पर बजते तार-सी
कस गई हैं मेरी नसें
मेरे मन से रिसते हैं गीत
जैसे घाव से रिसता है ख़ून
मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स