अपराह्न में आये थे जन्म वासर के आमन्त्रण में
पहाड़ी लोग जितने,
एक-एक करके सभी ने दी मुझे पुष्प मंजरियाँ
साथ नमस्कार के।
धरणी ने पाया था न जाने किस क्षण में
प्रस्तर आसन पर बैठकर
करके वहिृतप्त तपस्या युगों तक
यह वह,
पुष्प का दान यह,
मनुष्य को जन्मदिन में उपहार देने की आशा से।
वही वर, मनुष्य को सुन्दर का नमस्कार
आज आया मेरे हाथ में
मेरे जन्म का यह सार्थक स्मरण है।
नक्षत्र खचित महाकाश में
कहीं भी ज्योति सम्पद में
दिया है दिखाई क्या
ऐसा दुर्लभ आश्चर्यमय सम्मान कभी?