अपरिग्रह दूत / भारत भाग्य विधाता / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
देशभक्त सच्चा गाँधी जी स्वदेशी के सच्चा भक्त,
स्वदेशी के धर्म नीति सेॅ आखिर तक रहलै अनुरक्त ।
घर के चीज उपेक्षित होतै आरो विदेशी पुण्य-पुनीत,
भला कहाँ सेॅ ई सब अच्छा, स्वदेशोॅ लेॅ घातक रीत ।
स्वदेशी के धारण सेॅ ही जागतै प्रेमोॅ देशोॅ लेॅ,
एत्तेॅ कैन्हेॅ होड़ा-होड़ी, की अंग्रेजी भेषोॅ लेॅ ।
घर के दौलत बाहर जाय छै, हमरे धन पर ओकरोॅ राज,
जब तक भाव नै स्वदेशी के तब तक रहतै चरकोॅ ताज ।
बापू के आँखी मेॅ सपना हर भारतवासी लेॅ छेलै,
तही वास्तेॅ राष्ट्रपिता तक आखिर मेॅ गाँधी कहलैलै ।
सब के हाथ मेॅ रोजी रोटी नीति-नियम सेॅ धन-अधिकार,
ऊ धन पूंजी तुच्छ त्याज्य छै जेकरोॅ पीछू पापाचार ।
धनपति खाली रक्षक धन के, मालिक बूझै छै बेकार,
वै पर तेॅ सब जन के हक छै, जे भी दीन दलित लाचार।
जे धनवान नै हेनोॅ मानै, ऊ दण्डोॅ के लायक छै,
ऊ नै देश के, गाँव-लोग के या जनहित के नायक छै ।
जे कि जरूरत से ज्यादा धन, तहखाना मेॅ जोगै छै,
वैं जन केॅ दुख तेॅ देतै छै, आपनोॅ दुख भी भोगै छै ।
ऊ नर मनुज कहावेॅ पारेॅजे धन जोड़ै; चोरे ऊ ?
नियम प्रकृति के नै मानै, पापी घोर अघोरे ऊ ।
जों नर ओतने धन केॅ लै छै, जेकरा जहां जरूरत छै,
तेॅ हेनोॅ की हालत होतै, जे लोगोॅ के हालत छै ।
हाही सेॅ ही सब गड़बड़ छै, निर्धनता के मूल यही,
हम्मी मालिक सब्भे धन के, धनवानोॅ के भूल यही ।
बापू तेॅ बस एतनै चाहै प्रकृति नियम सेॅ लोग चलौ
जेकरा जे टा जितना चाही, वैं सब बस ओतनै टा लौ।
के छै हेनोॅ नर धरती पर जेकरा यहाँ जरूरत भर,
मिलै प्रकृति सेॅ कम कुछुओ कभियो कोय्यो पर निर्भर ?
हाही बढ़ै तेॅ हिंसो आबै, फेनू तेॅ बस पापाचार,
नीति नियम सब देव-मनुज के, वहीं दिखै बेबस-लाचार ।
असंग्रह के नियम नीति ही सबल राष्ट्र के छेकै धन,
अस्तेय-असंग्रह जों होतै, तेॅ होतै की कोय निर्धन ।
श्रम केॅ कभी नै घटलोॅ लागेॅ, ओकरोॅ जे छेकै सम्मान
धनवानोॅ केॅ कहूँ नै लागेॅ, घटलोॅ जाय छै ओकरोॅ मान ।
मिली-जुली केॅ रहेॅ साथ में श्रम-पूंजी ठो साथे-साथ,
तेॅ स्वराज ठो मिलनै ही छै, बिना देर के हाथे हाथ ।
जों समाज अच्छा लाना छै तेॅ अच्छो ई काम हुएॅ,
बड़ोॅ हुएॅ कि छोटोॅ कोय सेॅ श्रम कुछ नै बदनाम हुएॅ ।
सब केॅ श्रमजीवी होना छै, श्रम पर जीना मरना छै,
निर्धन-धनजन के पर्वत के, उछली पार उतरना छै ।
जे अवरोध केॅ रोकी राखै, ऊ स्वराज नै सच्चा छै
आजादी हेनोॅ पैवोॅ की, ई तेॅ खाली गच्चा छै ।
बापू के सच्चा स्वराज तेॅ आर्थिक समरसता के मंत्रा,
एकरोॅ बिना नै ठहरेॅ पारेॅ, गण सुराज नै कोनो तंत्रा ।