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अप्पन समाजसं कटि गेलहुं त कोना जियब / भास्करानन्द झा भास्कर

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अप्पन समाजसं कटि गेलहुं त कोना जियब
अप्पन ‘स्वराज’सं हटि गेलहुं त कोना जियब
 
अप्पन भाषा मायक, भाषा सब भाषासं मीट्ठ
मायक ममतासं छटि गेलहुं त कोना जियब
 
अन्य प्रान्तक अन्न पाइन कनिको ने लागल
गला हड्डी गुड्डी लटि गेलहुं त’ कोना जियब
 
गाम छोड़िक’,मुंह मोड़िक’ ध’ लेने सब कोन
अप्पन संख्यामें घटि गेलहुं त’ कोना जियब
 
भाषा संस्कृतिसं होयछ सगरो निज पहिचान
अनकर लस्सासं सटि गेलहुं त’ कोना जियब
 
हम मैथिल, मैथिली भाषी जनक केर संतान
मिथिला- जड़िसं कटि गेलहुं त’ कोना जियब