भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अप्प दीपो भव / आम्रपाली 3 / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

और...
आम्रपाली की उम्र हुई -देह ढली

सारे सम्मोहों से परे हुई
गर्व चुका
साँसों का रथ आकर
यमपुर के द्वार रुका

झरा हुआ पात हुई
               जो रही कुसुम-कली

साँस थकी
मन की आस्थाएँ
अब हुईं और
आत्मा भी उसकी है
खोज रही नया ठौर

भीतर हर कोने में
        करुणा की जोत जली

जनपदकल्याणी का
रूप ढहा -मन महका
फल चखता जो पंछी
और नहीं वह चहका

थी अनाथ
    और हुई वह खाली अंजली