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अप्प दीपो भव / तथागत बुद्ध 6 / कुमार रवींद्र

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देहराग टूटा
पर गौतम
अन्तर-वीणा साध न पाये

उन्हें याद -
वे लौट रहे थे नदी-स्नान से
गिरे रेत पर मूर्छित होकर
कटे बान-से

खुली धूप का
वह अँधियारा -
पड़े रहे थे वे बौराये

पहुँचे थे फिर वृक्ष-तले वे
घिसट-घिसटकर
अगले दिन तक
देह हुई थी जैसे पत्थर

पूरी रात रहे थे
उनकी आँखों में
अज़ब-अज़ब से साये

निराहार रहने से
उनकी देह हुई थी जर्जर
बिना नेह का दिया हुई
या सूखा पोखर

समझे वे
भेद सभी
और फिर गये - ग्राम से भिक्षा लाये